• Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. बॉलीवुड न्यूज़
  4. first indian film raja harishchandra was released on 3 may 1913
Last Modified: शुक्रवार, 3 मई 2024 (17:12 IST)

111 साल पहले आज ही के दिन रिलीज हुई थी पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र, बनाने में लगे थे इतने रुपए

first indian film raja harishchandra was released on 3 may 1913 - first indian film raja harishchandra was released on 3 may 1913
Film Raja Harishchandra: भारतीय सिनेमा जगत की पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' 111 साल पहले आज ही के दिन यानी 3 मई 1913 को प्रदर्शित हुई थी। फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्माण दादा साहब फाल्के ने फाल्के फिल्म कंपनी के बैनर तले किया था। फिल्म बनाने में उनकी मदद फोटोग्राफी उपकरण के डीलर यशवंत नाडकर्णी ने की थी। 
 
फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' को बनाने में करीब 15 हजार रुपए लगे थे। उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी धनराशि थी। ऐसे में यदि फिल्म को केवल तीन या चार दिन के लिए प्रदर्शित किया जाएगा तो वे अपना खर्च कैसे निकालेंगे? इस फिल्म को 21 अप्रैल, 1913 को ओलंपिया थिएटर में कुछ प्रमुख लोगों के सामने प्रदर्शित किया गया था। उसके बाद कोरोनेशन थिएटर के मैनेजर नानासाहेब चित्रे ने फिल्म को प्रदर्शित करने की इच्छा जताई।
 
वर्ष 1911 में दादा साहेब अपने बेटे के साथ अमेरिका-इंडिया पिक्चर पैलेस में 'अमेजिंग एनिमल्स' नाम की फिल्म देखने पहुंचे थे। स्क्रीन पर जानवरों को देखकर फाल्के का बेटा अचंभित हो जाता है और घर आकर अपनी मां को सारी बातें बताता है। क्योंकि तब के दौर के लिए ये सब कुछ कल्पना जैसा था इसलिए बच्चे की बात पर कोई यकीन नहीं करता। इसलिए अगले दिन दादा साहेब पूरी फैमिली के साथ वहीं फिल्म देखने पहुंचते हैं।
 
लेकिन यहां पर एक ट्विस्ट आ जाता है और यही ट्विस्ट दादा साहेब फाल्के की पूरी जिंदगी बदल देता है। दरअसल होता ये है कि जिस दिन फाल्के फैमिली फिल्म देखने पहुंचती है, उस दिन ईस्टर था। इसलिए थियेटर में जानवरों वाली फिल्म की जगह ईसा मसीह के जीवन पर आधारित फिल्म 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' दिखाई जाती है। इस फिल्म को एक फ्रेंच डायरेक्टर ने बनाया था। 
 
जब थियेटर में बैठकर दादा साहेब फाल्के ने द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखी तो उनके मन में फिल्मों को लेकर कई कौतूहल जागे। फाल्के ने सोचा कि ऐसी फिल्म तो भारतीय परिदृश्य पर भी बनाई जा सकती है, इसलिए वापस आते ही उन्होंने फिल्म बनाने के तरीकों पर रिसर्च शुरू कर दी।
 
इसके बाद फिल्म राजा हरिश्चंद्र स्क्रिप्ट तैयार हो गई और कास्टिंग के लिए अखबारों में विज्ञापन दे दिए गए। अभिनय के लिए पुरुष कलाकार तो मिल गए लेकिन फिल्म के लिए एक भी महिला तैयार नहीं हुई। कहा जाता है कि इसके लिए दादा साहेब फाल्के मुंबई के रेड लाइट एरिया में भी गए लेकिन कोई महिला फिल्म में काम करने को तैयार नहीं थी। बाद में एक तवायफ राजी तो हुई लेकिन ऐन मौके पर उसके मालिक ने धोखा दे दिया। 
 
हताश और परेशान फाल्के एक ईरानी रेस्त्रां में चाय पीने पहुंचे तो उनकी नजर एक गोरे और दुबले-पतले रसोइये पर पड़ी। उसका नाम था अण्णा हरी सालुंके। अण्णा को पांच रुपए महीने के मिला करते थे। दादा साहब फाल्के ने उन्हें पांच रुपए रोज देने का वादा किया। दादा साहेब फाल्के ने उससे बात कर फिल्म में काम करने के लिए मना लिया। सालुंके की दाढ़ी-मूंछ कटवा दी गई और इस तरह भारतीय सिनेमा को उसकी पहली अभिनेत्री मिली।
 
फिल्म में राजा हरिश्चंद्र का किरदार दत्तात्रेय दामोदर दबके, पुत्र रोहितश्व का किरदार दादा फाल्के के पुत्र भालचंद्र फाल्के जबकि रानी तारामती का किरदार रेस्टोरेंट में बावर्ची के रूप में काम करने वाले व्यक्ति अन्ना सालुंके निभाया था। फिल्म के निर्माण के दौरान दादा फाल्के की पत्नी ने उनकी काफी सहायता की। इस दौरान वह फिल्म में काम करने वाले लगभग 500 लोगों के लिए खुद खाना बनाती और उनके कपड़े धोती थीं। यह फिल्म तीन मई 1913 में मुंबई के कोरनेशन सिनेमा में प्रदर्शित की गई।
 
फिल्म के प्रचार के लिए ‘राजा हरिश्चंद्र’ का एक विज्ञापन तीन मई, 1913 को ही तत्कालीन ‘बांबे क्रानिकल’ में प्रकाशित हुआ था। जिसमें शो का समय दिया गया था तथा विज्ञापन के अंत में एक नोट था कि दरें सामान्य दरों से दोगुनी होंगी। फिर भी, रंगमंच का परिसर दर्शकों से भरा हुआ था। इनमें से अधिकांश पारसी और बोहरा जैसे गैर हिंदू थे। मराठी दर्शकों की कमी साफ नजर आ रही थी। उमड़ी भीड़ को देखकर फाल्के दंपती बहुत खुश हुए। 
 
फिल्म एक सप्ताह तक हाउसफुल रही। इस वजह से उसे दर्शाने की अवधि एक सप्ताह के लिए और बढ़ा दी गई। 12वें दिन यानी 15 मई को एक और विज्ञापन प्रकाशित हुआ। अंग्रेजी अखबार के संपादक यूरोपियन थे, लेकिन उन्होंने इस पहली भारतीय फिल्म की दिल खोलकर तारीफ की। इसकी वजह से ‘राजा हरिश्चंद्र’ का खूब प्रचार हुआ और फिर मराठी दर्शकों को लगा कि यह जरूर अच्छी फिल्म होगी।
 
17 मई को प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया कि केवल महिलाओं और बच्चों के लिए आधी दरों पर विशेष शो होगा साथ ही यह भी कहा गया कि रविवार को आखिरी शो होगा। हालांकि दर्शकों की भीड़ थिएटर में उमड़ती रही और इसलिए ‘राजा हरिश्चंद्र’ एक और सप्ताह चली। लगातार 23 दिन तक चलने के कारण इसने कीर्तिमान स्थापित किया। इससे पहले कोई भी फिल्म चार दिन से ज्यादा नहीं चली थी। इस प्रकार पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ की सफलता अभूतपूर्व थी। इसके साथ ही तीन मई का तारीख और दादा साहेब फाल्के का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।
 
ये भी पढ़ें
संजय लीला भंसाली ने क्यों किया खुद का संगीत बनाने का फैसला?